नमस्कार
महावारी ना आने का एक कारण वजन ज्यादा होना भी होता है। सिर्फ वजन में जब healthy बदलाव आता है, तो आपको दवाइयां भी लेने की जरूरत नहीं पड़ती।
कहानी सात समुंदर पार की है
बात वही पुरानी है
देश विदेश का किस्सा है
किस्सा बिल्कुल सच्चा है
कुछ महीने पहले मुझे एक कॉल आया। एक मां का कॉल था। मां यह शब्द है शायद इसमें ही आपके बारे में हर चिंता छुपी है। कहते हैं मां से कुछ नहीं छुपता लेकिन मां सब छुपा लेती है। आप कितनी भी बड़ी हो जाए अगर आपको मां है तो वह आपके बारे में सोचेगी। फिर चाहे भारत छोड़ कहीं दूर अमेरिका में बैठी हुई मां, हो, भारत के किसी कोने में छोटे से गांव में रहने वाली मां हो। मां तो मां होती है अगर आपके बारे में फिक्र ना करें तो फिर वह मां कैसी।
और उसका सुने ऐसा घर हो गया तो हम उसकी बेटियां कैसे?
मां बहुत फिक्र करती है और उस फिक्र को हम में उड़ा देते हैं।
यह जो परेशान मां थी। इन्होंने मुझे फेसबुक से ढूंढा था। बड़ी आस लेकिन मेरे पास आई थी। उनकी 15 साल की लड़की जिसका वजन ज्यादा था। इसी वजह से उसकी माहवारी नहीं आ रही थी। अपने यहां मेडिकल कल्चर है कि कुछ चीजों के लिए राह नहीं देखते हैं और सीधे दवाइयां चालू कर देते हैं। अमेरिका में जैसे देशों में दवाइयां एकदम से चालू नहीं करते हर चीज को नैसर्गिक तरीके से आना चाहिए ऐसे उनकी धारणा है।
हमारे यहां यह दिक्कत है कि डॉक्टर आपको कुछ बीमारी रहे या ना रहे दवाइयां जरूर देते हैं । इसमें डॉक्टर और पेशेंट दोनों की गलती होती है। डॉक्टर दवाई ना लिखें तो वह डॉक्टर खराब है ऐसी मानसिकता हमारे यहां है, इसीलिए अगर आप डॉक्टर के पास जाते हो और कुछ भी जरूरत नहीं होती है तो भी minimum आपको टॉनिक तो भी देते हैं । अमेरिका जैसे देश में बहुत सारी दवाइयां ban है और डॉक्टर आपको सलाह देता है कि अगर आपको कुछ दिक्कतें वजन ज्यादा होने की वजह से हो रही है तो वजन कम कीजिए दवाई खाने से बेहतर वजन कम करना है।
इस को मां बड़ी दिक्कत हो गई थी क्योंकि वह जानती थी कि महावारी आना कितना जरूरी है। अपने देश से दूर किसी और देश में बच्चों को बड़ा करना मां के लिए बड़ी चुनौती होती है। हमारी संस्कृति से उनको मिलाएं रखना और जिस माहौल में वह बड़े हो रहे हैं उस संस्कृति में भी उन्हें ढालना यह दोहरा काम बडे ही शिद्दत से वह मां कर रही थी।
बहुत सारी discussion के बाद कुछ चीजें मुझे क्लियर जैसे कि US में packet food बहुत खाया जाता है।
हमारी जो मम्मी की बेटी थी उन्हें बिल्कुल भी इंडियन फूड पसंद नहीं था यह एक चैलेंज मेरे सामने था क्योंकि मैं इंडियन फूड को बहोत पसंद करती हु, चाहे वो किसी भी कल्चर का हो।
हम एक दूसरे को समझने की कोशिश कर रहे थे। दिक्कतों को पार करके हमारी जर्नी चालू हुई।
बच्चे अगर हर चीज समझ गए तो मां के लिए इससे अच्छी बात कुछ नहीं होती लेकिन वह बच्चे कैसे,? जो मां की हर एक बात सुने। मैंने और माताजी ने बहुत सारे पापड़ बेले तब जाकर लड़की का वजन कम हुआ और उसकी महावारी भी शुरू हो गई। मां इतनी ज्यादा खुश थी उसका अंदाजा लगाना कठिन था। बार-बार मेरा शुक्रिया अदा कर रही थी। आपकी वजह से ही चीजें रूटीन पर आई है और नॉर्मल हुई है ऐसा बोल रही थी।
यह अनुभव मेरे लिए नया नहीं था सिर्फ नए जगह से था।जहां का फूड कल्चर मुझे नहीं पता था और भाषा। मुझे इंग्लिश नहीं आती ऐसा नहीं पर उसे बोलने का तरीका हर जगह अलग होता है। नए पैकेट में पुराना अनुभव मिला। हर शख्स आपकी जिंदगी में आने वाला है वह आपको अनुभव समृद्ध बना कर जाता है।
मेरे साथ यही हो रहा है और यह अनुभव मैं आपके साथ बांट रही हूं। आपके अनुभव जब कहानियों में बदलते जाते हैं, तब एहसास होता है कि जो भी कठिनाइयां आई उसे सरल तरीके से हम मिलजुल कर पार कर गए।
मेरा अनुभव का पिटारा भरते जा रहा है। हर बार एक नई कहानी। मेहनत की कहानी। क्योंकि बिना मेहनत कुछ भी नहीं मिलता। मेहनत कभी खाली नहीं जाती।
तो मेहनत करते रहिए और हमें ऐसे ही पढ़ते रहीए ।
धन्यवाद
डॉ सोनल कोलते
आहार विशेषज्ञ